एक्सक्लूसिव

सुपर एक्सक्लूसिव: किन नकाबपोशों के बस आबकारी विभाग की नस ?

भूपेन्द्र कुमार लक्ष्मी

उत्तराखण्ड राज्य के आबकारी निरीक्षकों के अधिकांश कार्यालयों के किराये का भुगतान आबकारी विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा हैं आख़िर कौन नकाबपोश कर रहे हैं किराया जमा और क्या उद्देश्य हैं उनका ?
आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली आम लोगों की समझ से परे है। राज्यभर में अलग-अलग स्थानों पर आबकारी निरीक्षक (इंस्पेक्टर) के 40 कार्यालय हैं। इन कार्यालयों में से अधिकांश किराये के भवन में संचालित हो रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि विभाग इन कार्यालयों के किराये का भुगतान नहीं कर रहा है, जबकि भवनों के मालिक को बदस्तूर किराया मिल रहा है। सवाल यह है कि कौन नकाबपोश है जो सरकारी विभाग के कार्यालयों का किराया जमा कर रहे है क्योंकि यह बात तो पचने वाली हैं नहीं कि आबकारी निरीक्षक अपने वेतन से भवनों के किराए भुगतान कर रहे हों।
शराब की तस्करी पर रोक लगाने और शराब व्यवसाय पर पैनी नजर रखने के लिये आबकरी विभाग में निरीक्षकों की नियुक्ति की जाती है। विभाग के इन निरीक्षकों के लिये प्रदेशभर में 40 कार्यालय खोले गये हैं। इनमें से 6 कार्यालय ही ऐसे हैं जो सरकारी भवन में संचालित हो रहे हैं शेष कार्यालय 34 किराये के निजी भवनों में मौजूद हैं। इन 34 कार्यालयों में से अधिकांश के किराये का भुगतान विभाग की ओर से नहीं किया जा रहा है।
आबकारी विभाग के पास ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं ही नहीं जिनके आधार पर कहा जाये कि निरीक्षकों के दफ्तरों का किराये का भुगतान सरकार की ओर से किया जा रहा है। जबकि दूसरी ओर सम्बंधित भवन मालिकों का कहना है कि विभाग पर उनके भवन का कोई किराया बकाया नहीं हैं। साफ है कि कोई न कोई किराये का भुगतान कर रहा है। काबिलेगौर है कि अक्सर ऐसी घटनायें सामने आती हैं जिनमें आबकारी महकमे के अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में रहती है। शराब माफिया और तस्करों से विभाग का गठजोड़ भी किसी से छिपा नहीं है। यदि निरीक्षकों के कार्यालयों के किराये के भुगतान की पड़ताल की जाये तो इस गठजोड़ के सच का खुलासा होना तय हैं