भूपेन्द्र कुमार लक्ष्मी
उत्तराखंड राज्य के जिला देहरादून के सहसपुर थाने में युवक अभिनव कुमार के अवैध हिरासत में मौत मामलें में न्यायिक जाँच के बाद दरोगा पीडी भट्ट और अन्य पुलिसकर्मियों को घोर लापरवाही का दोषी मानते हुए मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति अखिलेश चन्द्र शर्मा तथा सदस्य पूर्व आईपीएस राम सिंह मीना द्वारा मामलें की अति गंभीरता संवेदनशीलता को देखते हुए किसी स्वतंत्र एजेंसी से जाँच की संस्तुति कर डीजीपी को नियमानुसार व विधिनुसार कार्यवाही हेतु निर्देशित कर आख्या मांगी गयी हैं।
सम्पूर्ण मामला इस प्रकार हैं कि उत्तराखंड राज्य के जिला देहरादून के थाना सहसपुर में पॉक्सो एक्ट समेत अन्य धाराओं में छात्रा की तहरीर पर एक युवक अभिनव कुमार यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था तथा जांच महिला दरोगा लक्ष्मी जोशी को सौंपी गई आरोपी अभिनव कुमार यादव को पूछताछ के लिए दिनाँक 29-11-2019 को थाना सहसपुर बुलाया गया था आरोपी से पूछताछ के बाद सुरक्षा की दृष्टि से थाना सहसपुर की हवालात में रखा गया आरोपी अभिनव कुमार यादव को 30-11-2019 की प्रातः जो कंबल उसे ओढ़ने के लिए दिया गया था उस कंबल के किनारों को फाड़कर बने फंदे में हवालात के भीतर कील में लटका पाया गया ।
उपरोक्त मामलें की शिकायत जनहित में मानवाधिकार आयोग उत्तराखंड में की गयी कि सहसपुर थाना पुलिस आरोपी की मौत को आत्महत्या बता रही है परंतु पुलिस की कहानी में झोल ही झोल नजर आ रहे हैं क्योंकि पुलिस का कहना है कि आरोपी ने रात को हवालात में कंबल के किनारे की पट्टी को फाड़कर उसका फंदा बनाया हवालात के अंदर दीवार पर कील थी जिस पर आरोपी ने फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली परंतु आरोपी ने आत्महत्या हवालात के ऐसे कोने में की जहां थाने में लगे सीसीटीवी कैमरे की पहुंच नहीं है सहसपुर थाने के अंदर हवालात के ठीक सामने थाना प्रभारी पीडी भट्ट का कार्यालय है तथा पास में ही थाना प्रभारी का आवास भी है इसके अलावा हवालात के पास ही पुलिस का कार्यालय है जहां 24 घंटे पुलिसकर्मी रहते हैं ऐसे में आरोपी युवक ने हवालात के अंदर जब फांसी लगाई तब पुलिस कहां थी और पुलिस को रात को भनक क्यों नहीं लगी जबकि हवालात के पास पुलिस का संतरी लगातार तैनात रहता है ऐसे में रात के समय जब आरोपी ने फांसी लगाई तब पुलिस क्या कर रही थी क्या पुलिस को आरोपी की हरकतों का पता नहीं लगा कमाल है आरोपी को सुरक्षा की दृष्टि से जिस हवालात में रखा गया उसी हवालात में उसने कील पर लटकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली इसलिए यह मामला संदिग्ध प्रतीत हो रहा है ।
साथ ही जिस थाने में यह घटना हुई है उस थाने के थानेदार पीडी भट्ट के पूर्व में भी अन्य थाने चौकी में तैनाती के दौरान हिरासत में मौत एवं मारपीट की घटनाएं घट चुकी है उदाहरणार्थ वर्ष 2012 में जिला देहरादून की थाना कोतवाली की धारा पुलिस चौकी में इनके प्रभारी रहते हुए अभिरक्षा में एक अजय बरसाती नामक युवक की जान चली गई थी जिसकी सीबीआई जांच चल रही है तथा वर्ष 2011 में जिला देहरादून की प्रेमनगर पुलिस चौकी में जब पीडी भट्ट चौकी प्रभारी थे तब उनके द्वारा एक आरोपी के साथ मारपीट कर उसके पैर पर जलती हुई सिगरेट भी लगाई गई तथा झूठे मामले में फंसाने की धमकी देते हुए उसका पुलिस एक्ट में चालान कर दिया था इस मामले की निगरानी को जिला देहरादून की माननीय लोअर कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिया था जिस पर पीड़ित पक्ष ने माननीय अपर सत्र न्यायाधीश तृतीय की अदालत में आवेदन दाखिल किया अदालत ने मामले में दाखिल रिवीजन को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के आदेश निरस्त करते हुए उचित आदेश पारित करने के आदेश दिया है तथा इस प्रकरण की विभागीय जांच वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून द्वारा पुलिस अधीक्षक नगर देहरादून को सौंपी गई है ।
मानवाधिकार आयोग उत्तराखंड में जनहित में याचिका दायर कर निवेदन किया गया कि मामला अत्यंत ही गंभीर एवं खुलेआम मानवाधिकारों के उल्लंघन का है इसलिए इस मामले में जनहित न्यायहित में तत्काल कार्यवाही करते हुए थाने के प्रभारी पी.डी. भट्ट एवं थाने के समस्त स्टाफ के विरुद्ध उच्च स्तरीय जांच के आदेश तथा थाना प्रभारी पी.डी.भट्ट के पूर्व के समस्त मामलों (हिरासत में मौत एवं मारपीट) की उच्च स्तरीय जांच अथवा सीबीआई से जांच करवाने के आदेश कर कार्यवाही करने की कृपा करें।
मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून को नोटिस जारी कर प्रकरण में आख्या प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया गया था।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून द्वारा इस प्रकरण में न्यायालय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट विकास नगर जिला देहरादून द्वारा की गई न्यायिक जांच की रिपोर्ट मानव अधिकार आयोग उत्तराखंड में प्रस्तुत की गई न्यायिक जांच में दरोगा पीडी भट्ट तथा अन्य पुलिस कर्मचारियों की घोर लापरवाही पाई गई न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अपनी जांच में लिखा गया है कि थानाध्यक्ष ही थाने पर होने वाले प्रत्येक घटना का उत्तरदायी व्यक्ति होता है तथा अन्य पुलिसकर्मी उसके मातहत होने के कारण उसके मार्ग निर्देशन में कार्य करते हैं । प्रश्नगत प्रकरण में मृतक को बिना उसके विरुद्ध मुकदमा दर्ज किए हवालात मर्दाना में ताला लगाकर बंद किया गया था और यह तथ्य अच्छी तरह थानाध्यक्ष एसआई पीडी भट्ट के संज्ञान में था। दिनांक 29-11-2019 को मृतक के विरुद्ध तहरीर प्राप्त हो जाने पर भी एसआई पीडी भट्ट द्वारा तत्काल मुकदमा दर्ज कर विवेचना अधिकारी नियुक्त करने के लिखित आदेश पारित नहीं किए। यद्यपि एसआई पीडी भट्ट ने दिनांक 29-11-2019 को मामले की विवेचना के मौखिक आदेश एसआई लक्ष्मी जोशी को फोन द्वारा रात 9:42 बजे दिए थे किंतु मामला औपचारिक रूप से देर रात 10:04 बजे दर्ज हुआ और तभी औपचारिक रूप से एसआई लक्ष्मी जोशी मामले की विवेचक नियुक्त हुई । यद्यपि तहरीर के अनुसार मामला आईटी एक्ट के अपराध का भी बनता था। तथा इसी आधार पर एसआई लक्ष्मी जोशी ने थानाध्यक्ष के विवेचना करने के मौखिक आदेश के प्रति अनिच्छा जाहिर की हो क्योंकि आईटी एक्ट के अपराध की विवेचना निरीक्षक स्तर के अधिकारी द्वारा ही की जा सकती थी, परंतु तहरीर के आधार पर आईटी एक्ट में मुकदमा दर्ज नहीं किया गया । थानाध्यक्ष ने तहरीर पर मुकदमा दर्ज करने का औपचारिक आदेश भी नहीं किया था । इसी कारण तहरीर प्राप्त हो जाने के बाद भी तत्काल मुकदमा दर्ज नहीं हो पाया और मामले में अविलंब विवेचना प्रारंभ नहीं हो पाई । यह कृत्य थानाध्यक्ष एसआई पीडी भट्ट की घोर प्रशासकीय लापरवाही इंगित करता है तथा मृतक अभिनव कुमार यादव को दिनांक 28-11-2019 समय 18:49 बजे से दिनांक 29-11-2019 समय 22:04 बजे तक थाना सहसपुर के मर्दाना हवालात में अवैध अभिरक्षा में निरुद्ध किए जाने हेतु वही उत्तरदाई प्रतीत होते हैं ।
यह बताया गया कि पुलिस क्षेत्राधिकारी विकास नगर द्वारा मृतक अभिनव कुमार यादव के सदोष परिरोध हेतु अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध थाना सहसपुर पर मुकदमा अपराध संख्या- 448 वर्ष 2019 अंतर्गत धारा 342 भा.द.सं.भी दर्ज किया गया है ।
मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति अखिलेश चन्द्र शर्मा तथा सदस्य पूर्व आईपीएस आर.एस. मीना द्वारा न्यायिक जांच के बाद आदेश किया गया है कि मजिस्ट्रियल जांच की आख्या से अवगत है कि थानाध्यक्ष एसआई पीडी भट्ट तथा अन्य पुलिस कर्मचारियों की घोर प्रशासकीय लापरवाही इंगित करता है । उपरोक्त मजिस्ट्रियल जांच की आख्या में पुलिस कर्मचारियों की घोर लापरवाही इंगित की गई है । ऐसी स्थिति में मामले की संवेदनशीलता को दृष्टिगत रखते हुए प्रकरण की जांच किसी ‘स्वतंत्र एजेंसी’ से कराया जाना उचित प्रतीत होता है ।
मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति अखिलेश चन्द्र शर्मा तथा सदस्य पूर्व आईपीएस राम सिंह मीना द्वारा मामलें की अति गंभीरता संवेदनशीलता देखते हुए दैनिक जागरण समाचार पत्र दिनांक 01-12-2019 की प्रति तथा भूपेन्द्र कुमार की शिकायत की प्रति तथा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून की आख्या के साथ न्यायालय अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट विकास नगर जिला देहरादून की जांच आख्या पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को भेज किसी स्वतंत्र एजेंसी से जाँच की संस्तुति कर पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड को नियमानुसार व विधिनुसार कार्यवाही हेतु निर्देशित कर आख्या मांगी गयी हैं।
आख़िर सवाल यह है कि जिस दरोगा पीडी भट्ट की अवैध हिरासत में मौत मामले में घोर लापरवाही मानी गई है न्यायिक जाँच तक मे दोषी माना गया हैं वह आज भी जिला हरिद्वार के भगवानपुर थाने का इंचार्ज है । जबकि पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड के निर्देश हैं कि दागी छवि वाले किसी को भी थाने चौकी का चार्ज ना दिया जाए ।