हल्द्वानी सुप्रीम कोर्ट ने बनभूलपुरा अतिक्रमण के मामले में राज्य सरकार को पुनर्वास योजना बनाने के निर्देश दिए हैं, मगर जिस तरीके से पुनर्वास के कई मामलों में अब तक राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया रहा है, उस देखें तो यह इतना आसान नहीं लग रहा।
जमीन की तलाश करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनेगी, क्योंकि हाई कोर्ट, अंतरराज्यीय बस अड्डा हो या फिर सैनिकों के बच्चों के लिए छात्रावास बनाने जैसी कई योजनाएं, इनके लिए भी सरकार हल्द्वानी व आसपास जमीन नहीं तलाश सकी है। यहां तक कि आपदा से प्रभावितों के पुनर्वास को लेकर भी सरकार वर्षों तक उन्हें विस्थापित नहीं कर पाती है। ऐसे में बनभूलपुरा में अतिक्रमण की गई भूमि पर बसे 50 हजार से अधिक लोगों के पुनर्वास के बारे सोचना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई
बहुचर्चित बनभूलपुरा और रेलवे प्रकरण में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। वैसे तो विस्थापन बहुत मुश्किल है। अगर ऐसा होता है तो बनभूलपुरा का स्वरूप बदल जाएगा। 50 वर्ष से कब्जे की 30.04 एकड़ भूमि खाली होगी और यहां रहने वाले 4365 परिवार को घर छोड़कर दूसरी जगह पर विस्थापित होंगे। इस समय बनभूलपुरा के अतिक्रमण वाली भूमि में रेलवे व प्रशासन की रिपोर्ट के आधार पर 4365 परिवार रह रहे हैं और कच्चे व पक्के 50 हजार लोगों का आशियाने हैं।
अतिक्रमण के दायरे में दो इंटर कालेज, दो प्राइमरी स्कूल और एक जूनियर हाईस्कूल है। कई धार्मिक स्थल और दो से तीन मदरसे हैं। प्रशासन का दावा है कि बनभूलपुरा में अब 20 हजार वोटर हैं और अतिक्रमित जमीन पर 4500 बिजली कनेक्शन। वर्ष 2007 में पहले भी रेलवे ने यहां से कब्जा खाली कराने के लिए बड़ा अभियान चलाया था।
दो दिन तक चले अभियान के बाद राजपुरा समेत काफी बड़े इलाके को अतिक्रमण मुक्त करा लिया गया था, लेकिन अधिकारियों की ढिलाई के चलते इस जगह पर फिर से अवैध कब्जा हो गया। इधर, 20 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिया था। राहत पाने के लिए पीड़ित परिवार सुप्रीम कोर्ट की शरण में चले गए। तब से मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।
बनभूलपुरा के लोगों ने पांच जनवरी को ली थी राहत की सांस
20 दिसंबर 2022 को हाई कोर्ट ने बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। इस फैसले से लोगों की नींद उड़ गई थी। लोग सड़क पर उतर आए थे। पांच जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने बनभूलपुरा अतिक्रमण मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि रातोंरात 50 हजार लोगों को नहीं उजाड़ा जा सकता है। साथ ही बुधवार को की गई टिप्पणी से भी इस क्षेत्र के लोगों ने राहत की सांस ली है।
अतिक्रमण हटेगा तो ट्रेनें पकड़ेंगी रफ्तार
सरकार व रेलवे दोनों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के आधार पर बनभूलपुरा में काम किया तो रेलवे का विस्तार होगा और नई ट्रेनें रफ्तार पकड़ेंगी। काठगोदाम को पहले चौहान पाटा के नाम से जाना जाता था। 1901 तक यह 300 से 400 की आबादी वाला गांव हुआ करता था। 1884 में अंग्रेजों ने हल्द्वानी और इसके बाद काठगोदाम तक रेलवे लाइन बिछाई। तभी से इस जगह का व्यावसायिक महत्व ज्यादा बढ़ गया और यह राष्ट्रीय महत्व की जगह बन गया। काठगोदाम रेलवे स्टेशन को कुमाऊं का आखिरी स्टेशन भी कहते हैं।
शुरुआती दौर में काठगोदाम से सिर्फ मालगाड़ी ही चला करती थी, लेकिन बाद में सवारी गाड़ी भी चलने लगी। अब यहां से नई ट्रेनें चलाने की जगह नहीं है। हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से विस्तार की योजना थी, लेकिन अतिक्रमण की वजह से परवान नहीं चढ़ सकी। वहीं दूसरी तरह गौला नदी ने रेलवे पटरी की ओर भू-कटाव शुरू कर दिया। ऐसे में रेलवे के विस्तार के लिए अतिक्रमण हटाना जरूरी हो गया था। विशेषज्ञ कहते हैं कि पूरी जगह खाली होने पर इस जगह से वंदे भारत समेत कई नई ट्रेनें संचालित हो सकती हैं।
मैं एक दशक से अधिक समय से रेलवे की भूमि में अतिक्रमण को हटाने के लिए लड़ रहा हूं। जल्द हल्द्वानी में रेलवे की भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाया जा सकता है। इससे हल्द्वानी सहित पूरे कुमाऊं का विकास होगा। कई रेलवे परियोजनाएं शुरू होंगी और कई नई ट्रेनें चलेंगी। – रविशंकर जोशी, याचिकाकर्ता
यदि रेलवे गौला नदी की ओर से बनने वाली रिटेनर वाल सही से बनवा दे तो फिर कहीं भी रेलवे को भूमि की जरूरत नहीं है। रेलवे व प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट की तरह मानवीय दृष्टिकोण को देखते हुए गरीब जनता के हित में निर्णय लेने चाहिए। – अब्दुल मतीन सिद्दीकी, उत्तराखंड प्रभारी, सपा
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश स्वागतयोग्य है। आगे भी उम्मीद है कि कोर्ट का आदेश मानवता के आधार पर आएगा। राज्य सरकार को भी इसी आधार पर वर्षों से रहने वाले हजारों की आबादी के बारे में गंभीरता से सोचे। – सुहेल सिद्दीकी, प्रदेश महासचिव, कांग्रेस