मंडी। हिमाचल प्रदेश की हॉट सीट मंडी में मुख्य मुकाबला बेशक क्वीन फेम कंगना बनाम रामपुर बुशहर के राजा विक्रमादित्य होने की संभावना है, पर यह युद्ध परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों के वंशजों में भी है।
इस लोकसभा चुनाव में हिमाचल के छह बार मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय वीरभद्र सिंह और पूर्व दूरसंचार मंत्री स्वर्गीय पंडित सुखराम के परिवार के बीच आंकड़ा परंपरागत रहेगा।
दोनों परिवारों के बीच वर्षों बाद 2019 के संसदीय चुनाव में कागजी मैत्री तब हुई थी, जब सुखराम के पोते आश्रय शर्मा ने मंडी से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, पर उसके बाद भी वीरभद्र चुनावी सभाओं में सुखराम परिवार को कभी ‘आया राम, गया राम’ बताते रहे।
इस चुनाव में वीरभद्र के गृह इलाके रामपुर बुशहर से भाजपा को बढ़त मिली थी। सुखराम परिवार वैसे तो 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा में शामिल हो गया था, पर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान दादा-पोता पलटी मारकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
2022 के विधानसभा चुनाव में आश्रय ने भाजपा में वापसी कर ली, पर अब तक कहीं न कहीं कांग्रेस टिकट की उम्मीद भी पाले हुए थे। उनके पिता अनिल शर्मा मंडी सदर से भाजपा विधायक हैं।
1983 से शुरू हुई थी दुश्मनी
सुखराम ने 1962 से अपनी राजनीतिक यात्रा आरंभ की थी। 1983 में कांग्रेस नेतृत्व ने ठाकुर राम लाल को मुख्यमंत्री पद से हटा वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाया था। उस समय वह मंडी से सांसद थे। वीरभद्र के कहने पर कांग्रेस ने सुखराम को लोकसभा का चुनाव लड़वाया था।
सुखराम प्रदेश की राजनीति छोड़ किसी भी सूरत में केंद्र में नहीं जाना चाहते थे, पर उन्हें जाना पड़ा। यहीं से दोनों में दुश्मनी शुरू हुई। पहली बार सांसद बनने पर वह राजीव गांधी सरकार में रक्षा राज्य मंत्री और बाद में खाद्य आपूर्ति राज्य मंत्री बने।
1993 में खुलकर सामने आई थी तनातनी
1993 में वीरभद्र-सुखराम की तनातनी खुलकर सामने आ गई। आठवीं विस के चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटें मिली थी। उस समय करीब 25 विधायक पंडित सुखराम के साथ थे। वह मुख्यमंत्री बनते- बनते रह गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव भी सुखराम को सीएम बनाना चाहते थे, पर ऐसा हो न सका।
1998 में सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) पार्टी का गठन किया। भाजपा-कांग्रेस को 31-31 व हिविकां को पांच सीटें मिली थीं। उस समय भी सुखराम कांग्रेस से वीरभद्र की जगह किसी दूसरे नेता को सीएम बनाने की मांग करते रहे, पर कांग्रेस नेतृत्व नहीं माना था। अंतत: सुखराम ने भाजपा को समर्थन दिया था।
प्रेम कुमार 5 साल पूरे करने वाले पहले भाजपानीत सीएम बने
प्रो. प्रेम कुमार धूमल पहली बार ऐसी भाजपानीत सरकार के सीएम बने, जिसने पांच वर्ष पूरे किए। सुखराम परिवार ने 2004 में दोबारा कांग्रेस में वापसी कर ली। वीरभद्र ने 2014 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप शर्मा के हाथों प्रतिभा सिंह की हार का ठीकरा ब्राह्मणवाद पर फोड़ा था। वीरभद्र के साथ रार के बाद कांग्रेस के मजबूत मंडी सदर के किले पर भगवा फहराया था।
केंद्रीय मंत्री रहते इस क्षेत्र के विकास के लिए करवाए गए कार्यों को लेकर लोग अब भी सुखराम को याद करते हैं। वीरभद्र के पुत्र विक्रमादित्य के चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा के बाद सुखराम के पोते आश्रय फिर सक्रिय हो गए हैं।
आने वाले दिनों में आश्रय शर्मा और विक्रमादित्य के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर देखने को मिल सकता है। दोनों परिवारों में प्रतिद्वंद्विता का लाभ कंगना को मिल सकता है।
बता दें कि देवभूमि हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के छोटे से गांव भांबला की छोटू यानी कंगना रनौत ने फिल्म जगत में किस्मत आजमाने के लिए 18 साल की उम्र में मुंबई का रुख किया था। कड़ा परिश्रम किया। चार राष्ट्रीय पुरस्कार जीते, पद्मश्री पाया। हिमाचल के लगभग एक तिहाई भूभाग में फैले मंडी संसदीय क्षेत्र से अब वह भाजपा प्रत्याशी हैं। इसी सीट से दो चेहरे और चुनाव लड़ रहे हैं।