लागू किया उत्तर प्रदेश का ही भू-कानून
माना जा रहा है कि इस कानून के धरातल पर मूर्त रूप लेने से भूमि की बेतहाशा खरीद-फरोख्त थम सकेगी। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद राज्य में सख्त भू-कानून को धामी सरकार के एक और बड़े निर्णय के रूप में देखा जा रहा है।
कब क्या हुआ?
- वर्ष 2002 में पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने कानून सख्त बनाने की दिशा में कदम उठाए।
- वर्ष 2003 में बाहरी व्यक्तियों के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीद की सीमा तय। साथ ही 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीद की अनुमति देने का अधिकार डीएम को दिया गया।
- वर्ष 2007 में बाहरी व्यक्तियों के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीद की अनुमति घटाकर 250 वर्ग मीटर की गई।
- वर्ष 2018 में व्यावसायिक व औद्योगिक प्रयोजन के लिए 12.5 एकड़ के दायरे को बढ़ाकर 30 एकड़ किया गया।
- वर्ष 2021 में भू-कानून को लेकर पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में समिति गठित।
- वर्ष 2022 में सुभाष कुमार समिति ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी।
भू-कानून को लेकर संसदीय परंपराओं का नहीं हो रहा पालन: यशपाल आर्य
देहरादून : नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने भू-कानून से संबंधित विधेयक को राज्य मंत्रिमंडल से स्वीकृति और उसकी जानकारी सार्वजनिक होने पर तीखी आपत्ति की। उन्होंने सरकार पर संसदीय परंपराओं का पालन नहीं करने का आरोप लगाया।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि विधानसभा का सत्र चल रहा हो तो मंत्रिमंडल के निर्णयों की जानकारी सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए। यही परंपरा रही है। भू-कानून विधेयक आएगा या संशोधन विधेयक आएगा, इस बारे में सदन को जानकारी नहीं है, लेकिन उसके अंश सार्वजनिक हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि भू-कानून पर वह अपनी प्रतिक्रिया विधेयक के सदन में प्रस्तुत होने के बाद देंगे।
विभिन्न माध्यमों से पता चल रहा है कि वर्ष 2018 में किए गए परिवर्तनों को सरकार वापस ले रही है। कांग्रेस ने तब भी परिवर्तनों का विरोध किया था। यशपाल आर्य ने कहा कि वर्ष 2018 में भू-कानून में परिवर्तन के बाद राज्य की हजारों एकड़ भूमि बाहरी वयक्तियों को बेची गई। सरकार को श्वेत पत्र लाकर स्थिति साफ करनी चाहिए, ताकि जनता को पता चल सके कि भूमि की बंदरबांट किस प्रकार हुई है।