हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में चल रही रार को प्रयागराज कुंभ से पहले खत्म करने की तैयारी है। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि अखाड़ा परिषद में दो बार हरिद्वार कुंभ में रार होती है, फूट पड़ती है और फिर प्रयागराज में होने वाले कुंभ से पहले एका हो जाता है।
सभी अखाड़े मिलजुल कुंभ को सफल बनाते हैं। वर्ष 2010 हरिद्वार कुंभ के दौरान अखाड़ा परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदास से नाराजगी के बाद अखाड़ों में फूट पड़ने से दो गुट बन गए थे। दूसरे गुट का अध्यक्ष श्रीमहंत बलवंत सिंह को बनाया गया। यह लड़ाई करीब तीन वर्ष चली और वर्ष 2013 के इलाहाबाद कुंभ से पहले अखाड़ों में एका हो गया।
विदित हो कि श्रीमहंत हरिगिरि से बैरागी अणि और बड़ा अखाड़ा उदासीन की नाराजगी के चलते ही बैरागी, उदासीन और निर्मल अखाड़े ने एक साथ आकर महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्र पुरी को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष घोषित कर दिया था। यह कदम अखाड़ा परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरि के ब्रह्मलीन होने के बाद उठाया गया।
इस अखाड़ा परिषद में श्रीमहंत हरिगिरि को शामिल नहीं किया गया और उनकी जगह बैरागी निर्मोही अणि अखाड़ा के राजेंद्र दास को महामंत्री बना दिया गया था। दूसरी ओर प्रयागराज में संतों ने अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि की अगुआई में बैठक कर श्रीपंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव श्रीमहंत रविंद्र पुरी को अपना नया अध्यक्ष घोषित कर दिया।
इसके बाद से ही अखाड़ा परिषद में दो गुट हो गए। शुक्रवार को दोनों गुटों के अध्यक्षों के एकसाथ आने से यह साफ होता दिख रहा है कि अखाड़ा राजनीति प्रयागराज कुंभ से पहले अखाड़ों की रार के पटाक्षेप का शुभ संदेश देने वाली है।