गोपेश्वर। श्रमिकों के लिए शुक्रवार की सुबह बेहद डरावनी थी। तड़के से ही बर्फबारी के दौरान वातावरण में तेज आवाजें गूंज रही थीं। जोशीमठ स्थित सेना के चिकित्सालय पहुंचे श्रमिक व कर्मचारियों के अनुसार, तड़के जब उन्होंने कंटेनरों के बाहर छह फीट मोटी बर्फ की चादर बिछी देखी तो उन्हें भय लगने लगा। कंटेनर के दरवाजे भी बर्फ से ढकने के लिए मात्र दो फीट ही बचे थे।ऐसे में कंटेनर से निकलकर कुछ श्रमिक पास ही टिनशेड में जाकर भोर होने का इंतजार करने लगे। इस बीच तेज आवाज के साथ हिमस्खलन हुआ, लेकिन उसने कुछ नुकसान नहीं पहुंचाया। लेकिन, दोबारा जब धमाके के साथ हिमस्खलन हुआ तो हर ओर तबाही का मंजर था।
पहाड़ी पर गूंज रही थी धमाकों की आवाज
उत्तरकाशी निवासी अभिषेक पंवार बताते हैं कि शुक्रवार सुबह उजाला होने से पहले वह रोजाना की तरह कंटेनर से बाहर निकाले तो पहाड़ी पर धमाकों की आवाज गूंज रही थी। हालांकि, बर्फबारी के चलते कुछ नजर नहीं आ रहा था। जब तक वे कुछ समझ पाते, बर्फ के पहाड़ ने पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लिया।बर्फ में दबने से नहीं खुला कंटेनर का दरवाजा
सेना चिकित्सालय में भर्ती पिथौरागढ़ निवासी मुकेश कुमार बताते हैं कि कंटेनर के लुढ़कने का आभास हुआ तो उनकी नींद टूट गई। लेकिन, कंटेनर बर्फ में दबा था, इसलिए उसका दरवाजा नहीं खुला। वह और उसके साथी समझ चुके थे कि कुछ अनहोनी घट चुकी है। तभी सेना व आईटीबीपी के जवानों ने आवाज गूंजने लगी। वह उन्हें हौसला बनाए रखने को कह रहे थे। जब सेना ने बर्फ हटाकर उन्हें कंटेनर से बाहर निकाला, तब पता चला कि वे कैंप से 50 मीटर नीचे पहुंच चुके हैं।
जिस कंटेनर में रहे, उसका पता नहीं
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) निवासी विजय पाल कहते हैं, पहले गर्जना के साथ हिमखंड टूटा, जिसे देखकर वे कंटेनर से बाहर आ गए। तभी दूसरा हिमखंड टूटा और जिस कंटेनर में वह रह रहे थे, वह कहां चला गया, पता ही नहीं चला। बर्फ के साथ लुढ़ककर वह भी काफी दूर जा गिरे। वहां पहले से ही कई फीट बर्फ थी, जिससे तेज चला भी नहीं जा रहा था। जैसे-तैसे वे सेना के कैंप में पहुंचे और मदद के लिए गुहार लगाई।
बर्फ के कारण 20 मीटर नीचे पहुंचा कंटेनर
पिथौरागढ़ निवासी लक्ष्मण सिंह बताते हैं, हमारा कंटेनर को लुढ़काकर बर्फ 20 मीटर नीचे ले गई, लेकिन वह बर्फ में दबा नहीं। मैं सकुशल हूं, लेकिन इसे मैं अपना दूसरा जन्म मानता हूं। गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) सत्यप्रकाश यादव कहते हैं, हम लोग गहरी नींद में थे। जब धमाके के साथ आंख खुली तो हमारा कंटेनर लगभग 200 मीटर अलकनंदा नदी के किनारे पहुंच चुका था। हिमस्खलन के साथ आई भारी-भरकम चट्टानों ने कंटेनर को तोड़ डाला। हालांकि, कंटेनर में मौजूद सभी साथी स्वयं ही सेना के कैंप तक पहुंचे। जहां उन्हें उपचार दिया गया। आर्मी कैंप तक गए जहां उन्हें उपचार दिया गया।