भूपेन्द्र कुमार लक्ष्मी
- समस्त मामला इस प्रकार हैं कि 12 वी कक्षा की एक छात्रा सृष्टि ने वयापक जनहित में मानवाधिकार आयोग उत्तराखंड में जनहित याचिका दायर कर गुहार लगाई गयी कि कुछ दिन पूर्व अखबारों में सोशल मीडिया पोर्टल आदि में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गयी थी कि देहरादून के प्रेस क्लब में एक स्पेक्स एनजीओ जिसके सचिव डॉ.बृजमोहन शर्मा हैं ने 28-10-2021 को प्रैस वार्ता में जानकारी दी गई कि उनकी एनजीओ ने जून से सितंबर, 2021 तक सरसों के तेल में मिलावट के परीक्षण के लिए अभियान शुरू किया गया जिसमें उनकी एनजीओ ने उत्तराखंड राज्य के 20 स्थानों जैसे देहरादून, विकास नगर, डोईवाला, मसूरी, टिहरी, उत्तरकाशी, ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, जोशीमठ, गोपेश्वर, हरिद्वार, जसपुर, काशीपुर, रुद्रपुर, राम नगर, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ से सरसों के तेल के 469 नमूने एकत्र थे जिनमें से 415 नमूने मिलावटी पाए गए।डॉ.बृजमोहन शर्मा के अनुसार मसूरी, रुद्रप्रयाग, जोशीमठ, गोपेश्वर और अल्मोड़ा में सरसों के तेल के नमूनों में शत-प्रतिशत मिलावट पाई गई, वहीं जसपुर में न्यूनतम मिलावट 40% , काशीपुर में 50% पाई गई,उत्तरकाशी में 95%, देहरादून 94%, पिथौरागढ़ 91%, टिहरी 90%, हल्द्वानी 90%, विकास नगर 80%, डोईवाला 80%, नैनीताल 71%, श्रीनगर 80%, ऋषिकेश 75%, राम नगर 67%, हरिद्वार 65%, रुद्रपुर में 60 प्रतिशत मिलावट पाई गई ।
उपरोक्त नमूनों में पीले रंग यानी मेटानिल पीला, सफेद तेल, कैटर ऑयल, सोयाबीन और मूंगफली जिसमें सस्ते कपास के बीज का तेल होता है, और हेक्सेन की मिलावट का अधिक प्रतिशत पाया गया। बड़ी संख्या में स्वास्थ्य समस्याओं का कारण हमारे द्वारा खाया जाने वाला भोजन ही है, और यह हमेशा दाल, सब्जियों की गुणवत्ता के बारे में नहीं होता है बल्कि भोजन के तेल की गुणवत्ता के बारे में भी होता है।
सरसों के तेल में सस्ते आर्जीमोन तेल की मिलावट पाई जाती है जिससे जल शोथ (Ascites) रोग होते हैं,इसके लक्षणों में पूरे शरीर में सूजन, विशेष रूप से पैरों में और पाचनतंत्र संबंधी समस्याएं जैसे उल्टी, दस्त और भूख न लगना शामिल हैं, ऐसे में थोड़ी सी भी मिलावट जलन पैदा कर सकती है, जो कि उस समय तो कोई बड़ी बात नहीं लगती, परन्तु लंबे समय में इसके गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। - परन्तु स्पेक्स एनजीओ के सचिव डॉ.बृजमोहन शर्मा ने अपनी प्रैस वार्ता में यह तो सार्वजनिक तौर पर बताया कि सरसों के तेल के 469 नमूने एकत्र थे जिनमें से 415 नमूने मिलावटी पाए गए और इस मिलावटी सरसो के तेल को प्रयोग करने से लोगों की सेहत पर विपरीत गंभीर परिणाम हो सकते हैं,परन्तु डॉ.बृजमोहन शर्मा ने प्रेस वार्ता में अपने प्रेस नोट में यह लिखित में नही बताया कि कौन-कौन सी कंपनी कौन-कौन से मार्का का सरसों का तेल मिलावटी हैं और किन-किन दुकानों,संस्थानों आदि से सैम्पल एकत्र किए गए जबकि डॉ.बृजमोहन शर्मा को यह भी अपने प्रेस नोट में लिखित में सार्वजनिक करना चाहिए था जो उनके द्वारा नही किया गया। अगर किया गया होता तो आमजनता उन मिलावटी सरसों के तेल को प्रयोग करने से बच सकती थी तथा डॉ.बृजमोहन शर्मा के द्वारा मिलावटी सरसों के तेलों के मार्का, कम्पनी आदि की जानकारी भी दी गयी होती तो आमजनता उन मिलावटी तेलों का प्रयोग ना करती।
- इसलिये प्रार्थना हैं कि आमजनता के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वालें सरसों के तेल के मार्का, कम्पनी आदि तथा जिन-दुकानों ,संस्थानों से तेल के सैम्पल लिए गए उन सबकी जानकारी स्पेक्स एनजीओ के सचिव डॉ.बृजमोहन शर्मा से मंगवाने की कृपा करें और आम लोगों की सेहत को देखते हुए आपके द्वारा जल्दी से जल्दी कार्यवाही की जाने की कृपा की जाये।
- मानव अधिकार आयोग द्वारा छात्रा सृष्टि की शिकायत की गंभीरता को देखते हुए और उसे स्पष्ट रूप से आमजनता की जान माल की हानि से जुड़ा हुआ मानते हुए आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति अखिलेश चन्द्र शर्मा द्वारा जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई की गई और खाद्य सुरक्षा अधिकारी देहरादून एवं सपैक्स संस्था के सचिव डॉक्टर बृजमोहन शर्मा को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में आयोग में आख्या दाखिल करने हेतु निर्देशित किया गया है।
- आखिर देखा जाए तो छात्रा सृष्टि द्वारा जो डॉक्टर बृजमोहन शर्मा की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर सवाल खड़े किए हैं, वह बिल्कुल सही है, क्योंकि मात्र अपनी एनजीओ का प्रचार करने हेतु प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के साथ-साथ अपने प्रेस नोट में अगर जिन-जिन दुकानों संस्थानों से सरसों के तेल के सैंपल लिए गए तथा सरसों के तेल के मार्का,कंपनी आदि की भी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए थी क्योंकि देहरादून के प्रेस क्लब में की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब सारी जानकारी सार्वजनिक हो जाती तो यह सब समाचार पत्रों,सोशल मीडिया आदि के माध्यम से प्रकाशित हो जाता और आमजनता को मिलावटी सरसों के तेल के मार्का कंपनी नाम आदि की जानकारी हो जाती तो कम से कम आमजनता उस मिलावटी सरसों के खाद्य तेल को इस्तेमाल तो ना करती।