दिल्ली में मानसून की बारिश से राहत की बजाय डर का माहौल है। अनियोजित विकास और खराब जलनिकासी व्यवस्था के कारण शहर में जलभराव की समस्या बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि नए मास्टर प्लान और एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल से ही दिल्ली को इस समस्या से निजात मिल सकती है। दिल्ली को इसलिए डराती है मानसून की वर्षा।
भीषण गर्मी के दौरान आमतौर पर मानसून की बारिश से लोग राहत महसूस करते हैं, लेकिन देश की राजधानी में लोग मानसून की बारिश से डरे हुए हैं, इसका कारण यहां बारिश होने पर होने वाला जलभराव है। इससे स्थिति और खराब होती जा रही है।
एक तरफ शहर के 65 फीसदी से अधिक हिस्से में अनियोजित विकास हुआ है, वहीं 1700 कॉलोनियों में व्यवस्थित जलनिकासी व्यवस्था का न होना भी इस शहर में जलनिकासी के लिहाज से बड़ी समस्या है।
नालों पर अतिक्रमण और उनकी समुचित सफाई न होना भी जलभराव की समस्या को बढ़ावा दे रहा है। नालों के रखरखाव को लेकर मल्टी बॉडी सिस्टम एक अलग समस्या है।
विशेषज्ञों की मानें तो जब तक दिल्ली के लिए कोई नया जलनिकासी मास्टर प्लान बनाकर जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया जाता, तब तक समस्या के समाधान की ज्यादा उम्मीद करना बेमानी होगा। सच यह भी है कि शहर के बरसाती नालों के रखरखाव का जिम्मा अलग-अलग एजेंसियों के पास है। इनके बीच समन्वय का अभाव है।
दिल्ली के हालात पर नज़र डालें तो बारिश के पानी की निकासी के लिए दिल्ली में तीन मुख्य नाले हैं। इनमें से एक है ट्रांस यमुना, दूसरा है बारापुला और तीसरा है नजफगढ़ ड्रेन। इन मुख्य नालों से कुल 201 बड़े नाले जुड़े हुए हैं। 34 नाले ट्रांस यमुना, 44 नाले बारापुला और 123 नाले नजफगढ़ ड्रेन से जुड़े हुए हैं। इन तीन मुख्य नालों के ज़रिए बारिश का पानी यमुना में बहाया जाता है।
दिल्ली एक ऐसा शहर है जो 65% अनियोजित है और यहाँ कोई नियोजित जल निकासी व्यवस्था नहीं है। यहाँ 1,700 अनियमित कॉलोनियाँ हैं जहाँ कोई जल निकासी व्यवस्था नहीं है। गलियों में नालियाँ तो हैं लेकिन बाद में वे सीवरेज सिस्टम में मिल जाती हैं। चाँदनी चौक, नई सड़क, सदर, दया बस्ती, सब्ज़ी मंडी, शकूर बस्ती जैसे कई इलाके हैं जहाँ सालों पुराना जल निकासी सिस्टम काम कर रहा है।
लोक निर्माण विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता ओपी त्रिपाठी के अनुसार, ड्रेनेज सिस्टम के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि शहर के कई नाले इस्तेमाल के लायक नहीं रह गए हैं।
जो नाले पहले कम आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाए गए थे, अब बढ़ी हुई आबादी में भी जलनिकासी के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। जिन जगहों पर नाले यमुना में गिरते हैं, उनके आसपास कई कॉलोनियां बस गई हैं। दिल्ली सरकार को एक हाई पावर कमेटी बनानी चाहिए जो ड्रेनेज सिस्टम पर काम करे।
डीडीए के पूर्व प्लानिंग कमिश्नर एके जैन कहते हैं कि ड्रेनेज मास्टर प्लान पर कभी गंभीरता से काम ही नहीं किया गया। ड्रेनेज सिस्टम के ध्वस्त होने का सबसे बड़ा कारण दिल्ली में बड़े पैमाने पर हुआ अनियोजित विकास है, जिसकी वजह से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
उनका कहना है कि दिल्ली का आखिरी ड्रेनेज मास्टर प्लान 1976 में बना था, लेकिन उस पर भी ज्यादा काम नहीं हुआ। नालों की जिम्मेदारी कहीं बाढ़ और सिंचाई विभाग, कहीं एमसीडी तो कहीं पीडब्ल्यूडी के पास है, लेकिन इनके बीच तालमेल नहीं है। नालों के लिए एजेंसी बनाने की जरूरत है।