दूसरी ओर, आवासों पर बाहरी लोगों का कब्जा होने के कारण स्थिति यह है कि पालिका में तैनात कई कर्मचारी किराए के मकान में अंयत्र रहने को मजबूर हैं। पालिका बोर्ड की पिछली बैठक में प्रति आवास तीन हजार रुपये प्रतिमाह किराया वसूली का प्रस्ताव पास किया गया था। मगर छह माह तक प्रस्ताव धरातल पर नहीं उतरने के कारण यह स्वत: ही निरस्त हो गया।
इधर, पालिका में प्रशासक और नए ईओ की नियुक्ति के बाद आय बढ़ोतरी को लेकर प्रयास किया जा रहे हैं। जिसमें पालिका आवासों को खाली कराकर इनको बाजार दर पर किराए पर देने की योजना है।
ईओ दीपक गोस्वामी ने बताया कि विभागीय स्तर पर टीम गठित कर 545 पालिका आवासों का सर्वे कराया जा रहा है। इन आवासों में निवासरत लोगों की सूची तैयार कर अवैध कब्जेदारों को चिह्नित किया जाएगा। इसके बाद आवासों को खाली करने के साथ ही निर्धारित बाजार दर पर किराए पर देकर पालिका आय में बढ़ोतरी की जाएगी।
ऐसे हुआ पालिका आवासों पर कब्जा
ब्रिटिश काल में गठन के बाद अधिकांश विभाग नगर पालिका से संबद्ध थे। इन विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को पालिका की ओर से ही आवास आवंटित किए जाते थे। आजादी के बाद भी शहर में यही व्यवस्था लागू रही। मगर 1976 में शिक्षा विभाग, हाइडिल, जल संस्थान को नगर पालिका से अलग कर दिया गया।
मगर इन विभागों के कर्मियों ने पालिका आवास नहीं छोड़े। पालिका से भी सेवानिवृत्त होने वाले कई परिवारों ने भी आवासों को निर्धारित अवधि में खाली नहीं किया।
वहीं, पालिका की ओर से गैर विभागीय लोगों को भी आवास किराए पर दिए गए, मगर वर्षों बीत जाने के बाद भी इन आवासों के किराए में बढ़ोतरी नहीं की गई। नतीजतन, आवासों की संपत्ति होने के बावजूद आज पालिका के हाथ खाली है।
एरियर और अन्य भुगतान न होना बना समस्या
पालिका आवासों में गैर सरकारी व अन्य विभागों से सेवानिवृत्त हो चुके कर्मियों के परिवारों का तो कब्जा है ही, पालिका से सेवानिवृत्त कई कर्मियों के परिवार भी आवासों में जमे हुए हैं। हालांकि सेवानिवृत्ति के बाद कर्मियों को एरियर, पेंशन और अन्य भुगतान नहीं होना भी इसका कारण है। पालिका स्तर से भुगतान नहीं होने पर कई कर्मियों ने पालिका आवासों को खाली नहीं किया।