देहरादून के दून अस्पताल में संवेदनहीनता की पराकाष्ठा,बरती जा रही है घोर लापरवाही क्योंकि महिला के प्रसव हेतु अस्पताल की इमरजेंसी में आने के बाद तीन घंटे लगा देते हैं फ़ाइल बनाने में महिला फ़ाइल बनने तक दर्द से तड़पती रहती है और कई दफा इमरजेंसी में ही हो प्रसव हो जाता है इस तरह की घोर लापरवाही बरत पीड़ित महिलाओं की जान से खिलवाड़ कर उनका किया जा रहा है उत्पीड़न इसके लिए स्पष्ट रूप से दून अस्पताल के प्राचार्य डॉ.आशुतोष सयाना और दून अस्पताल के एमएस ज़िम्मेदार क्योंकि उपरोक्त लापरवाही पर नजर रखना उनकी है जिम्मेदारी।
जिला देहरादून के दून अस्पताल में लेबर रूम की बजाय इमरजेंसी में गर्भवतियों के प्रसव हो रहे हैं, ऐसा कई गर्भवतियों के साथ हो रहा है, जिनका प्रसव इमरजेंसी में हुआ है इन सभी गर्भवतियों को आशा कार्यकर्ता अस्पताल लेकर आईं थीं। आशाओं का कहना है कि गर्भवती की भर्ती फाइल बनाने में स्टाफ दो से तीन घंटे का समय लगाते हैं। गर्भवती दर्द से तड़पती रहती है। उसे लेबर रूम तक ले जाने की नौबत ही नहीं आ पाती, प्रसव इमरजेंसी में ही हो जाता है।
यह कि अस्पताल में गर्भवती को भर्ती करने के नाम पर डॉक्टर बहुत लापरवाही बरतते हैं। खासकर रात में जब गर्भवती को ले जाओ तो सबसे पहले बिना किसी जांच के डॉक्टर कोरोनेशन के लिए रेफर कर देते हैं।
यह कि इसके बाद जब इलाज को कहो तो इलाज में इतनी लापरवाही बरतते हैं जैसे मरीज की कोई फिक्र ही न हो। दर्द से तड़पती गर्भवती को लेबर रूम में ले जाना तो दूर इमरजेंसी में भर्ती की फाइल ही बनाते रहते हैं। फाइल बनाने के लिए इतना लंबा समय लेते हैं कि इमरजेंसी में प्रसव हो जाता है।
उदहारण हेतु केस न.1
लक्ष्मण चौक निवासी संगीता नौ माह की गर्भवती थीं। इमरजेंसी में मौजूद स्टाफ ने संगीता को भर्ती करने से पहले कई जांच करवाई। करीब ढाई घंटे बाद गर्भवती को भर्ती किया। ऐसे में प्रसव इमरजेंसी में ही हो गया। इनको शिवा दुबे नाम की आशा लेकर आईं थीं।
उदहारण हेतु केस न.2
डालनवाला निवासी सीमा को प्रसव पीड़ा होने पर दून अस्पताल की इमरजेंसी में आई थीं। इनको चमन शर्मा नाम की आशा लेकर आई थीं। रात का समय था और वहां पर कोई सीनियर डॉक्टर नहीं था। मौजूद स्टाफ ने भर्ती करने में तीन घंटे लगा दिए। ऐसे में इमरजेंसी में ही प्रसव हो गया।
साथ ही यह भी बहुत ही गंभीर बात है कि आशाओं द्धारा जब दून अस्पताल की इमरजेंसी में गर्भवती महिला को भर्ती करवाया जाता है तो महिला की सभी जांच करवाते हैं। इसके बाद सैंपल जमा करने इमरजेंसी से ओपीडी तक आशा को भेजा जाता है। ओपीडी में तीसरी मंजिल पर सैंपल जमा करना होता है। आधी रात में चौराहा पार करके ओपीडी जाने पर आशाओं भी असुरक्षित महसूस करती है जबकि सैंपल अस्पताल के स्टाफ से भिजवाएं जाने चाहिए जोकि नहीं भिजवाए जाते हैं।
गर्भवती महिलाओ को दून अस्पताल से कोरोनेशन अस्पताल रेफर किया जाता है। जबकि कोरोनेशन अस्पताल जिला अस्पताल है और दून अस्पताल में गंभीर मरीजों का इलाज संभव है।
इस संवाददाता द्वारा एक दैनिक लोकप्रिय समाचार पत्र के अंक दिनांक 18/12//2023 में ख़बर पढ़ने के बाद उसी समय मानवाधिकार आयोग उत्तराखंड में जनहित याचिका दायर कर निवेदन किया गया कि उपरोक्त शिकायत का विषय गर्भवती महिलाओं की जानमाल की हानि उनके उत्पीड़न उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ा हुआ है तथा स्पष्ट रूप से दून अस्पताल प्रशासन की घोर लापरवाही है इसलिए जनहित में व्यवस्था सही करने हेतु निर्देशित कर रिपोर्ट मंगवाने की कृपा कर तत्काल कड़ी कार्यवाही करने की कृपा करें ।
मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायाधीश गिरधर सिंह धर्मशक्तू द्वारा शिकायत की गंभीरता को देखते हुए तत्काल कार्यवाही करते हुए आदेश जारी किए गए:-
*आदेश*
पत्रावली पेश, शिकायकर्ता दून अस्पताल में बरती जा रही लापरवाही तथा अव्यवस्था के सम्बन्ध में शिकायती पत्र प्रस्तुत किया गया है।
शिकायती प्रार्थना पत्र की प्रति संलग्नक सहित प्राचार्य, दून अस्पताल मेडीकल कॉलेज, देहरादून को प्रेषित की जाए कि वह नियत तिथि से पूर्व अपनी आख्या आयोग के समक्ष दाखिल करेंगे।