श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय, बादशाही थौल में उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आयी है। उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन लापरवाही से किया जाता है, कहीं गलत उत्तर को सही ठहराते हुए अंक दिये जाते हैं तो कहीं उत्तर जांचे ही नहीं जाते। बानगी देखिए प्रश्न है कि मुस्लिम लीग का संस्थापक कौन था? उत्तर दिया जाता है कि मुहम्मद अली जिन्नाह जो सरासर गलत है लेकिन परीक्षक द्वारा इसे सही मानते हुए अंक दिया जाता है।
उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का यह सच उस समय उजागर हुआ जब राज्य सूचना आयुक्त श्री योगेश भट्ट ने सूचना अधिकार के तहत एक शिकायतकर्ता की इतिहास एवं राजनीति शास्त्र की उत्तर पुस्तिकायें आयोग में तलब कर अपीलार्थी को उनकी प्रति उपलब्ध करायी। राज्य सूचना आयोग ने सूचना अधिकार के अंतर्गत जांची गयी उत्तर पुस्तिकायें समय पर उपलब्ध न कराये जाने पर लोक सूचना अधिकारी एवं डीम्ड लोक सूचना अधिकारी को नोटिस जारी करते हुए परीक्षा नियंत्रक को मूल्यांकन पर स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिये हैं। आयोग ने उत्तर पुस्तिकाओं के गैर जिम्मेदाराना मूल्यांकन तथा सूचना अधिकार के अंतर्गत अनुरोध पत्रों का जिम्मेदारीपूर्वक निस्तारण न किये जाने पर विश्वविद्यालय को क्षतिपूर्ति का नोटिस जारी करते हुए कुलसचिव को विश्वविद्यालय की ओर से स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के निर्देश दिये हैं। विश्वविद्यालय से संबंधित सूचना अधिकार के एक अन्य प्रकरण में समय पर सूचना उपलब्ध न कराने पर आयोग द्वारा लोक सूचना अधिकारी तथा डीम्ड लोक सूचना अधिकारी पर दस हजार रूपये की शास्ति अधिरोपित की गयी है।
राज्य सूचना आयोग में अधिवक्ता श्री हिमांशु सरीन द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अपने व्यवहारी हरिद्वार निवासी श्री दीपक के लिए सूचना अनुरोध पत्र के माध्यम से श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय से बी0ए0 तृतीय वर्ष के राजनीति विज्ञान एवं इतिहास की उत्तर पुस्तिकायें मांगी गयी थी। लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना अनुरोध पत्र स्वीकार करने के उपरांत सूचना न दिये जाने पर अपीलार्थी द्वारा राज्य सूचना आयोग में धारा (18) के अंतर्गत शिकायत की गयी। शिकायत पर सुनवाई के दौरान राज्य सूचना आयुक्त ने पाया कि लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के विपरीत अनुरोध पत्र स्वीकारते हुए सूचना भी उपलब्ध नहीं करायी गयी। राज्य सूचना आयुक्त श्री योगेश भट्ट ने स्पष्ट किया कि लोक सूचना अधिकारी द्वारा शिकायतकर्ता की ओर से किसी अन्य व्यक्ति के लिए सूचना मांगे जाने संबंधी अनुरोध पत्र स्वीकार करते हुए पंजीकृत किया गया है। सूचना अधिकार अधिकनयम के प्राविधान के अनुसार श्रीमान अधिवक्ता द्वारा अपने जिस व्यवहारी के लिए सूचना मांगी जा रही है, मूल सूचना अनुरोध पत्र उसी व्यवहारी के नाम पते के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। प्रस्तुत अनुरोध से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिवक्ता श्री हिमांशु सरीन द्वारा श्री दीपक की सूचना मांगी जा रही है। चूंकि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत मूल अनुरोध पत्र लोक सूचना अधिकारी द्वारा पंजीकृत किया गया है अतः समस्त तथ्यों के आलोक में शिकायतकर्ता/अधिवक्ता श्री हिमाशु सरीन को निर्दिशित किया जाता है कि आगामी सुनवाई पर वह अपने व्यवहरी/श्री दीपक की व्यक्तिगत उपस्थिति सुनिश्चित करें। अगामी सुनवाई पर मूल अनुरोध पत्र में उल्लेखित श्री दीपक की पहचान स्पष्ट होने तथा उनके द्वारा अधिकार पत्र प्रस्तुत किये जाने पर उन्हें श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय से वांछित सूचना उपलब्ध करायी जाएगी।
आयोग के समक्ष शिकायतकर्ता/अधिवक्ता द्वारा अपने व्यवहारी के पहचान के साथ उपस्थित होने पर लोक सूचना अधिकारी द्वारा वांछित सूचना के क्रम में प्रस्तुत उत्तर पुस्तिकाओं का अवलोकन किया गया। अपने अंतरिम आदेश में आयोग ने कहा कि प्रश्नगत उत्तर पुस्तिका के अवलोकन से विदित होता है कि उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन सही नहीं किया गया है। प्रेषित सूचना के परीक्षण में यह तथ्य प्रकाश में आया कि उत्तर पुस्तिका में कई प्रश्नों को परीक्षक द्वारा जांचा ही नहीं गया। प्रेषित सूचना का मूल उत्तर पुस्तिका से मिलान किये जाने पर गैर जिम्मेदाराना मूल्यांकन की पुष्टि होती है। उदाहरण स्वरूप प्रश्नगत प्रकरण में राजनीति शास्त्र विषय की उत्तर पुस्तिका में कई प्रश्नों के उत्तरों को नहीं जांचा गया है तो इतिहास विषय में एक प्रश्न मुस्लिम लीग का संस्थापक कौन था के सापेक्ष दिये गये उत्तर ‘‘मुहम्मद अली जिन्नाह‘‘ परीक्षक द्वारा सही मानते हुए अंक दिये गए हैं। सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 18 के प्राविधानों के अंतर्गत वर्णित परिस्थिति में परीक्षा नियंत्रक, श्री देव सुमन विश्वविद्यालय बादशाही थौल, चम्बा टिहरी गढ़वाल, नई टिहरी एवं कुलसचिव, श्री देव सुमन विश्वविद्यालय बादशाही थौल, चम्बा टिहरी गढ़वाल, नई टिहरी को निर्देशित किया जाता है कि उपरोक्त के संबंध में आगामी सुनवाई की तिथि पर व्यक्तिगत उपस्थित होकर आयोग के समक्ष विस्तृत आख्या प्रस्तुत की जाए। उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन अत्यंत संवेदनशील विषय है। परीक्षक द्वारा सही मूल्यांकन न किया जाना उत्तर पुस्तिका में लिखे प्रश्नों के उत्तरों की जांच न किया जाना, गलत अंक दिया जाना आदि लापरवाही छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में लापरवाही या जानबूझकर की गयी गड़बड़ी किसी भी दशा में स्वीकार्य नहीं हो सकती। एक ओर जब मूल्यांकन की पारदर्शी व्यवस्था की जरूरत पर बल दिया जा रहा है वहीं राज्य के विश्वविद्यालय में मूल्यांकन की गैर जिम्मेदाराना व्यवस्था विश्वविद्यालय की कार्य संस्कृति एवं विश्वसनियता पर सवाल खडे़ करती है। सुनवाई के दौरान आयोग के संज्ञान में लाया गया कि विश्वविद्यालय स्तर पर परीक्षा संबंधी समस्त कार्य परीक्षा नियंत्रक की देखरेख में सम्पन्न किये जाते हैं। जो परीक्षक मूल्यांकन कार्य सम्पादित कर रहे हैं वह मूल्यांकन के प्रति संवेदनशील एवं विश्वसनीय है अथवा नहीं, यह देखना परीक्षा नियंत्रक का ही कर्तव्य है। आयोग ने शिकायतकर्ता के क्षतिपूर्ति दिलाये जाने के अनुरोध के क्रम में लोक प्राधिकारी/कुलपति से आगामी सुनवाई पर इस आशय के स्पष्टीकरण की अपेक्षा की है कि प्रश्नगत शिकायत में वर्णित परिस्थितियों में सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 19(8)(ख) के अंतर्गत क्यों नहीं विश्वविद्यालय पर शिकायतकर्ता द्वारा वांछित क्षतिपूर्ति अधिरोपित की जाए। लोक प्राधिकारी द्वारा कुलसचिव के माध्यम से आगामी सुनवाई पर विश्वविद्यालय का पक्ष आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाना सुनिश्चित किया जाये।
उत्तर पुस्तिकाओं से ही संबधित एक अन्य प्रकरण में आयोग द्वारा श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी एवं डीम्ड लोक सूचना अधिकारी पर दस हजार रूपये की शास्ति अधिरोपित की गयी है।