देहरादून:सहस्त्रधारा के गंधक युक्त पानी के औषधीय गुणों को किया जाए संरक्षित
देहरादून, 14 जून 2025: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से मात्र 15-16 किलोमीटर दूर राजपुर गांव के पास स्थित सहस्त्रधारा, अपने गंधक युक्त पानी (सल्फर स्प्रिंग्स) के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है। यह प्राकृतिक जल स्रोत न केवल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि इसके औषधीय गुण चर्म रोगों जैसे खुजली, घमोरियां और दाने आदि के उपचार में लाभकारी माने जाते हैं। हालांकि, बढ़ते पर्यटन और प्राकृतिक जल स्रोतों के दोहन के कारण इस अनमोल धरोहर को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है।
*औषधीय महत्व और मान्यताएँ*
आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार, सहस्त्रधारा का गंधक युक्त पानी चूना पत्थर की चट्टानों से निकलता है, जिसमें सल्फर की प्राकृतिक मात्रा होती है। इस पानी में स्नान करने से त्वचा संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह पानी पोलियो जैसे रोगों में भी सहायक हो सकता है, हालांकि इसकी वैज्ञानिक पुष्टि की आवश्यकता है।
*पर्यावरण और संरक्षण की चुनौती*
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान ने सहस्त्रधारा को भू-विरासत (जियो-हेरिटेज) का दर्जा दिया है, क्योंकि यहाँ की चूना पत्थर की गुफाएँ हजारों वर्ष पुरानी जलवायु की जानकारी प्रदान करती हैं। हालाँकि, जल स्रोतों के सूखने और अत्यधिक दोहन की समस्या देहरादून में बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सहस्त्रधारा के गंधक स्रोत का आकार छोटा हो रहा है, जिसके लिए तत्काल संरक्षण उपायों की जरूरत है।
*जनहित में माँग*
स्थानीय निवासियों और पर्यावरणविदों ने सरकार से माँग की है कि सहस्त्रधारा के गंधक युक्त पानी की शुद्धता और स्रोत को बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ। इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
गंधक स्रोत के आसपास अनियंत्रित पर्यटन पर रोक लगाई जाए।
जल स्रोतों के रिचार्ज के लिए वनीकरण और जल संरक्षण योजनाएँ शुरू की जाएँ।
पानी की शुद्धता की नियमित जाँच और गुफाओं के संरक्षण के लिए विशेष अभियान चलाए जाएँ।
*पर्यटकों के लिए सावधानी*
पर्यटकों को सलाह दी जाती है कि वे गंधक युक्त पानी में स्नान करते समय सावधानी बरतें, क्योंकि चट्टानें फिसलन भरी हो सकती हैं और पानी गहरा हो सकता है। साथ ही, यह पानी पीने योग्य नहीं है, क्योंकि स्रोत की शुद्धता प्रभावित हो सकती है।
सहस्त्रधारा का गंधक युक्त पानी न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह उत्तराखंड की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा भी है। इसे बचाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसके लाभ उठा सकें। सरकार, स्थानीय समुदाय और पर्यटकों को मिलकर इस अनमोल स्रोत को संरक्षित करने की दिशा में काम करना होगा।आप भी करें योगदान
यदि आप सहस्त्रधारा की यात्रा करते हैं, तो कूड़ा-कचरा न फैलाएँ और जल स्रोत का सम्मान करें। आइए, इस प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने में अपनी भूमिका निभाएँ।