भुवनेश्वर। भारतीय ट्रेन हादसे की सबसे बड़ी ट्रैजेडी मानी जा रही है। हादसे के दर्दनाक मंजर ने दिल दहला दिया है। ट्रेन में सवार लोगों के शव यहां-वहां बिखरे मिले।
दो एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त और शुरू हुआ मौत का तांडव
बता दें कि, शुक्रवार शाम को कोरोमंडल एक्सप्रेस-बंगलौर हवाड़ा एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। पहले बाहनगा के पास कोरोमंडल एक्सप्रेस पटरी से उतरी थी। इसके बाद इसी लाइन से आ रही बंगलौर-हावड़ा एक्सप्रेस ने कोरोमंडल को धक्का दिया और 17 कोच पटरी से उतर गए।
हादसे के 12 घंटे बीत चुके हैं। शुक्रवार शाम से राहत और बचाव कार्य चल रहा है, शनिवार सुबह खबर लिखे जाने तक एक बोगी का रेस्क्यू बाकी रह गया था। हर बोगियों के नीचे लोगों के शव बरामद हुए। मौत का तांडव जारी है और ये आंकड़ा और बढ़ सकता है।
मुख्य सचिव ने कहा है कि राहत और बचाव कार्य अभी भी जारी है। एक जनरल डिब्बे का राहत बचाव कार्य शुरू हुआ है। राहत और बचाव कार्य में अभी भी कम से कम 4 से 5 घंटे का समय लगेगा।
डेढ़ घंटे बाद शुरू हुआ रेस्क्यू ऑपरेशन
हादसे के बाद स्थानीय लोगों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों और बचाव दल की टीम पहुंची मगर अंधेरे के कारण कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। बचाव अभियान भी ठीक से नहीं चल पाया। करीब डेढ़ घंटे बाद स्थानीय प्रशासन और बाहनगा रेलवे स्टेशन ने लाइट की व्यवस्था की और लाइट जलने के बाद यात्री टूटे हुए हाथ-पैर के साथ लेटे नजर आए।
ब्लड डोनेट करनेवालों की लग गई लाइन
हादसे के बाद घायल यात्रियों को स्थानीय बाहनगा और सोरो अस्पताल के साथ बालेश्वर जिला अस्पताल ले जाया गया। बालेश्वर अस्पताल में युद्ध स्तर पर उनका इलाज शुरू किया गया।
हादसे की वजह से गंभीर घायलों का काफी खून बह गया था। नतीजतन, उन्हें खून की आवश्यकता थी। बालेश्वर ब्लड बैंक में जमा खून खत्म हो गया। इस बीच, कई गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इंटरनेट मीडिया पर प्रचार प्रसार शुरू किया। नतीजतन, कुछ ही मिनटों में सैकड़ों लोग रक्तदान करने के लिए अस्पताल पहुंच गए। कतार में खड़े होकर लोगों ने रक्तदान किया।
पागल की तरह अपने और दोस्तों की तलाश
हादसे के बाद ट्रेन में सफर कर रहे परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बिछड़ गए। दोस्त एक दोस्त से अलग हो गए। कौन जीवित है, किसका जीवन चला गया है देखने के लिए कुछ भी नहीं था। ऐसे समय में जो बचे थे चित्कार कर रहे थे और अपनों को खोज रहे थे।
फकीर मोहन विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर रंजन राउत भी ट्रेन में यात्रा कर रहे थे, वह दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। रंजन ने सोरो में अपने दोस्त मृत्युंजय पाणिग्रही को फोन पर घटना की जानकारी दी और पीने का पानी लाने के लिए कहा।
मृत्युंजय 7 किमी दूर सोरो से पानी लेकर पहुंचे और दुर्घटना स्थल पर पहुंचकर रंजन को पागलों की तरह ढूंढने लगे। हालांकि, मृतकों और सैकड़ों घायलों के बीच उनका पता नहीं चल सका। उस समय का दृश्य दिल दहला देने वाला था।