भूपेन्द्र कुमार लक्ष्मी
भारत के मुख्य न्यायमूर्ति एनवी रमण ने देशभर के थानों में मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि मानवाधिकारों के हनन और शारीरिक यातनाओं का सबसे ज्यादा खतरा थानों में है। हिरासत में यातना सहित ओर अन्य पुलिस अत्याचार ऐसी समस्याएं हैं जो अभी भी हमारे समाज में व्याप्त हैं। संवैधानिक घोषणाओं और गारंटियों के बावजूद गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को प्रभावी कानूनी सहायता नहीं मिल पाती है, जो उनके लिए बेहद नुकसानदायक साबित होता है। उन्होंने कहा कि हाल की रिपोर्टों के अनुसार विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के साथ भी थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया जाता है।
चीफ जस्टिस रमण रविवार को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण(नालसा) के विजन व मिशन स्टेटमेंट और मोबाइल एप की लॉन्चिंग के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि पुलिस की ज्यादतियों को रोकने के लिए कानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार और मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए इसका व्यापक प्रचार-प्रसार आवश्यक है।
विज्ञान भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश व नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस यूयू ललित भी मौजूद थे। जस्टिस ललित ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया और विधि महाविद्यालयों को कानूनी सहायता के बारे में लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी विधि महाविद्यालयों को अपने आसपास के तालुकों में कानून सेवा के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए।
साथ ही नालसा के अधिकारियों ने इस नए एप की खूबियों के बारे में भी लोगों को अवगत कराया। इस एप के जरिए घर बैठे कानूनी मदद मांगी जा सकती है। इस ऐप से करीब 3000 कानूनी संगठन जुड़े हैं तथा इस मोबाईल एप के माध्यम से लाखों फरियादियों तक इस सेवा का पहुंचना सचमुच देश की न्यायिक सेवा में मील का पत्थर साबित होगा। लोग इस एप की सहायता से शीघ्र और सुनिश्चित कानूनी सेवा प्राप्त कर सकेंगे। इसके लिए कोई आपाधापी नहीं करनी होगी। कई छोटी-मोटी समस्याओं और सवालों के जवाब तो एप से ही मिल जाएंगे। इसके जरिए पीड़ित पक्ष मुआवजे के लिए खुद अर्जी भी दे सकते हैं।